Tuesday, April 3, 2018

04-04-18 प्रात:मुरली

04-04-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - जीते जी मरजीवा बनो, हम अशरीरी आत्मा हैं, यही पहला पाठ अच्छी तरह से रोज़ पक्का करते रहो"
प्रश्नः-
सम्पूर्ण सरेन्डर किसको कहा जायेगा?
उत्तर:-
जो सम्पूर्ण सरेन्डर हैं वह देही-अभिमानी होंगे। यह देह भी हमारी नहीं, अभी हम नंगे बनते हैं अर्थात् तन-मन-धन जो कुछ है, वह बाबा को अर्पण करते हैं। सब मेरा मेरा समाप्त कर पूरे ट्रस्टी होकर रहना ही सम्पूर्ण सरेन्डर होना है। बाबा कहते - बच्चे, मेरा बनकर सबसे ममत्व मिटा दो। धन्धा धोरी करो, सम्भालो, माँ बाप की पालना का कर्जा उतारो परन्तु बाप की श्रीमत पर ट्रस्टी होकर।
गीत:-
दर पे आये हैं कसम ले.....  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। जरूर गीत में रहस्य भरा हुआ है, जो बाप बैठ इनका अर्थ समझाते हैं। इसको कहा जाता है जीते जी मरकर बाप का बनना। बाप का बनने के बाद फिर टीचर वा गुरू करते हैं। ऐसे भी नहीं सभी लौकिक गुरू करते हैं। मैजारिटी गुरू करते हैं। क्रिश्चियन लोग भी जब बच्चा पैदा होता है तो क्रिश्चियनाइज़ करते हैं। गुरू की गोद में जाकर देते हैं। फिर पादरी हो या कोई भी हो। पादरी तो क्राइस्ट नहीं हुआ। कहेंगे उनके नाम पर हम क्रिश्चियन बनते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो पहले-पहले तो हम बाप के बनते हैं। अपना तन, मन, धन जो कुछ है, बाबा को अर्पण करते हैं। जीते जी मरते हैं अर्थात् हम आत्मा उनका बनते हैं। यह बुद्धि में रहना चाहिए। जो भी मेरी-मेरी वस्तु है - मेरा शरीर, मेरा धन, दौलत, सम्बन्धी आदि जो कुछ है, भूलते हैं। मरने के बाद सब भूल जाता है। कितनी बड़ी मंजिल है! हम अशरीरी आत्मा हैं, यह पक्का करना है। ऐसे नहीं कि तुम शरीर छोड़ और मर पड़ते हो। नहीं, आत्मा कम्पलीट प्योर थोड़ेही बनी है। भल बाप का बने हो परन्तु बाबा कहते हैं तुम्हारी आत्मा अपवित्र है। आत्मा के पंख टूटे हुए हैं। अभी आत्मा उड़ नहीं सकेगी। तमोप्रधान होने कारण एक भी आत्मा वापिस जा नहीं सकती। माया ने एकदम पंख तोड़ दिये हैं। बाबा ने समझाया है आत्मा है फ्लाइंग स्क्वाइड। सबसे तीखी जाती है। उससे तीखी चीज़ कोई होती नहीं। आत्मा से कोई पहुँच नहीं सकता। पिछाड़ी में मच्छरों सदृश्य सब आत्मायें भागती हैं। कहाँ जाती हैं? बहुत दूर-दूर सूर्य चाँद से भी पार। वहाँ से फिर लौटना नहीं है। उन्हों के रॉकेट आदि तो जाकर फिर लौट आते हैं। सूर्य तक तो पहुँच नहीं सकते। तुमको तो उनसे बहुत दूर जाना है। सूक्ष्मवतन से भी ऊपर मूलवतन में जाना है। झट चले जाते हैं। आत्मा को पंख मिल जाते हैं। हिसाब-किताब चुक्तू कर आत्मा पवित्र बन जाती है। इस कयामत के समय की महिमा बहुत लिखी हुई है। सब आत्माओं को हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। अभी तो सब आत्मायें मैली पाप आत्मायें हैं। यहाँ ही पुनर्जन्म लेती रहती हैं।

तुम जानते हो यह बेहद का ड्रामा है। सब एक्टर्स को पार्ट बजाने वहाँ से आना जरूर है। सबकी आत्मायें स्टेज पर आनी हैं, जब विनाश का समय होता है तो सब आ जाते हैं। वहाँ रहकर क्या करेंगे। एक्टर बिगर पार्ट बजाने घर में थोड़ेही बैठ जायेंगे, नाटक में जरूर आना पड़ेगा। वहाँ से जब सब चले आते हैं तब फिर बाप सबको ले जाते हैं। बाप कहते हैं मैं भल यहाँ हूँ तो भी आत्मायें आती रहती हैं। वृद्धि को पाती रहती हैं नम्बरवार। फिर तुम जायेंगे भी नम्बरवार। सारा तुम्हारी अवस्था पर मदार है इसीलिए मरजीवा बनना है। हम आत्मा हैं यह निश्चय रखना मेहनत है। बच्चे घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आकर भूल जाते हैं। देही-अभिमानी तब होंगे जब कम्पलीट सरेन्डर होंगे। बाबा यह सब आपका है। मैं भी आपका हूँ। यह देह जैसे कि हमारी है नहीं। इनको मैं छोड़ देता हूँ। बाबा मैं आपका हूँ। बाबा कहते हैं मेरा बन और सबसे ममत्व मिटा दो। बाकी ऐसे नहीं कि यहाँ आकर बैठ जाना है। तुमको अपना धन्धा धोरी करना है। घर सम्भालना है। बच्चों का कर्जा उतारना है। मात-पिता की सेवा कर उनका उजूरा उतार देना है। बच्चों पर माँ बाप की पालना का कर्जा चढ़ता है। अब यह बाप तुम्हारी पालना कर रहे हैं तो तुमसे पहले ही सरेन्डर कराते हैं। सब कुछ दे दो। उनसे फिर तुम्हारी पालना भी होती है। यह शिवबाबा का भण्डारा है। मात-पिता तुम बच्चों की पालना कर रहे हैं। शुरू में जो भी आये थे सभी ने झट सरेन्डर कर दिया। अपने पास कुछ नहीं रखा। सरेन्डर किया फिर उस धन से बिगर छुट्टी पैसा आदि किसी को दे न सके। जैसे शास्त्रों में हरिश्चन्द्र की कहानी है। परन्तु यथार्थ तो कुछ है नहीं। भारत बिल्कुल पवित्र था। भारतवासियों जैसा पवित्र सुखी कोई होता नहीं। भारत सबसे बड़ा तीर्थ है जहाँ पतित-पावन बाप आकर सारे सृष्टि को, तत्वों को भी पवित्र बनाते हैं। अभी यह तत्व आदि सब दुश्मन हैं। अर्थक्वेक होगी, तूफान लगेंगे क्योंकि तमोप्रधान हैं। नैचुरल कैलेमिटीज़ आयेंगी, बहुत दु:ख देंगी। इस समय सब दु:ख की चीजें हैं। सतयुग में हैं सब सुख की चीज़ें। वहाँ यह तूफान वा गर्म हवायें आदि कुछ नहीं होती। तुम्हारे में भी यह बहुत थोड़े समझते हैं। आज हैं, कल नहीं हैं, तो कहेंगे कुछ नहीं समझता था। भल यहाँ आते हैं परन्तु सब कायम थोड़ेही रहते हैं। यहाँ से गये 10 दिन बाद समाचार लिखेंगे कि बाबा फलाने को माया खा गई। ऐसे होता रहता है। छोटे फूल हैं, बड़े फूल हो तो उनमें फल भी आवे। फल आ जाता तो दूसरों को आप समान बनाने की ताकत रहती है। उनका फल निकलता है। बाप के बने तो फिर प्रजा भी बनानी है। वारिस भी बनाने हैं। ऐसे नहीं पण्डा बन बाबा पास आये बस हम पहुँच गये। नहीं, मंजिल है बड़ी। कहते हैं माया के तूफान बहुत आते हैं। अरे तुम बाप के बच्चे हो तूफान तो आयेंगे। कहते हो बाबा हम आपके थे, आपसे वर्सा लिया था फिर पुनर्जन्म लेते-लेते 84 जन्म पास किये फिर आकर आपका बना हूँ। मैं तो आप से वर्सा लेकर छोडूँगा। तो ऐसे बाप को कितना याद करना पड़े और आप समान बनाए फल देना पड़े। नहीं तो मालिक कैसे बनेंगे। अपना वारिस कैसे बनायेंगे। प्रजा भी चाहिए और वारिस भी चाहिए, तो गद्दी पर बैठे। बाबा के पास तो बहुत आते हैं फिर फारकती दे देते हैं। बुद्धि का योग टूटा खेल खत्म।

कई बच्चे बाबा से आकर पूछते हैं - बाबा, अवस्था को कैसे जमायें? कोई तूफान न लगे। उन्हों को तो रास्ता बतलाते ही रहते हैं कि बाप को याद करो। तूफान तो लगेंगे ही। बॉक्सिंग में ऐसा कब देखा जो एक ही थप्पड़ खाता रहे। जरूर दोनों में हिम्मत होगी, थप्पड़ एक वह लगायेंगे तो 10 थप्पड़ दूसरे भी लगाते होंगे। यह भी बॉक्सिंग है। बाप को याद करते रहेंगे तो माया भागती जायेगी। परन्तु फट से तो नहीं होगा। माया से कुश्ती लड़नी है। ऐसे मत समझो माया थप्पड़ नहीं मारेगी। भल कोई भी हो बड़ी बॉक्सिंग है। बहुत डर जाते हैं। माया एकदम नाक में दम कर देती है। युद्धस्थल है ना। बुद्धियोग लगाने में माया बहुत विघ्न डालती है। मेहनत सारी योग में है। भल बाबा कहते हैं ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय हैं। परन्तु ऐसा नहीं सिर्फ ज्ञान देने वाला मुझे प्रिय है। पहले योग पूरा चाहिए। बाप को याद करना है। माया के विघ्नों से डरो नहीं। विश्व का मालिक बनते हो। 16108 की माला बहुत बड़ी है। अन्त में आकर पूरी होगी। त्रेता अन्त तक इतने प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हैं। कुछ तो निशानी है ना। 8 की भी निशानी है, 108 की भी निशानी है। यह बिल्कुल राइट है। त्रेता अन्त तक इतने 16108 प्रिन्स-प्रिन्सेज होते हैं। शुरू में तो नहीं होंगे। पहले थोड़े होंगे फिर वृद्धि पाते जाते हैं। वह सब बनते यहाँ हैं, चांस अभी बहुत अच्छा है। परन्तु मेहनत बहुत है। गीत में भी कहते हैं कब नहीं छोड़ेंगे, मर जायेंगे। बाबा फिर कहते हैं यह सब तुम बच्चों के लिए ही है। बच्चे कहते हैं - हमारा सब कुछ आपका ही है। कहते हैं ना कि यह सब कुछ भगवान ने दिया है। अब बाप कहते हैं यह तो सब खत्म हो जाना है। विनाश तो होता है ना। तुम्हारे पास क्या है? यह शरीर भी खत्म हो जायेगा। अब मैं फिर तुमको बदली कर देता हूँ। सिर्फ एक्सचेन्ज करते हो ना। तो बाप कहते हैं - बच्चे अशरीरी बनो। हमको याद करो, सभी सरेन्डर करो।

बाप कहते हैं इन सब शास्त्रों आदि का तुमको सार समझाता हूँ। जो शास्त्र आदि पढ़े हुए हैं वह तो समझते हैं। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख द्वारा तुमको यह समझाता हूँ, मैंने कल्प पहले भी तुमको राजयोग सिखाकर राजा-रानी बनाया था फिर अब बनाता हूँ। कभी भी मनुष्य, मनुष्य को गीता सुनाए, राजयोग सिखलाए राजा-रानी बना न सके। फिर गीता सुनने से क्या फायदा! बाप तो कहते हैं - मैं खुद कल्प-कल्प आकर तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। हमारे बनेंगे तब तो वारिस बनेंगे ना। तो जितना तुम योग में रहेंगे उतना शुद्ध बनते जायेंगे। बाबा यह सब आपका है। हम तो ट्रस्टी हैं। आपके हुक्म बिगर हम कुछ नहीं करेंगे। शरीर निर्वाह कैसे करना है, वह भी मत लेनी है। अक्सर करके गरीब ही पूरा पोतामेल देते हैं। साहूकार दे न सकें। सरेन्डर हो नहीं सकते। कोई विरला निकलता है। जैसे कि जनक का नाम है। बाल बच्चे हैं, जाइंट प्रापर्टी है तो अलग कैसे हो। साहूकार लोग प्रापर्टी निकालें कैसे, जो सरेन्डर हों। बाप है ही गरीब निवाज़। सबसे गरीब मातायें हैं, उनसे भी जास्ती कन्यायें गरीब हैं। कन्या को कभी वर्से का नशा नहीं होगा। बच्चे को बाप की जागीर का नशा रहता है। तो वह सब छोड़ फिर वैकुण्ठ का वर्सा लेना पड़े।

दान हमेशा गरीब को ही दिया जाता है। भारत है सबसे गरीब। अमेरिका बहुत साहूकार है। उनको वर्सा देते हैं क्या? भारत सबसे साहूकार था और कोई धर्म नहीं था। सिर्फ भारतवासी ही थे। एक भाषा थी, गॉड इज़ वन। मैं वन सावरन्टी, वन रिलीजन, वन लैंगवेज स्थापन करता हूँ। वन आलमाइटी गवर्मेन्ट स्थापन करते हैं। वन से फिर टू, थ्री होगी। अभी कितने धर्म हैं फिर जरूर वन धर्म आना चाहिए। 5 हज़ार वर्ष की बात है। मनुष्य समझते हैं फलाना मरा स्वर्गवासी हुआ, शायद ऊपर चला गया। देलवाड़ा मन्दिर में भी स्वर्ग ऊपर छत में है। तो मनुष्य मूँझ जाते हैं। वास्तव में स्वर्ग कोई ऊपर नहीं है। तुम अब जानते हो बाबा के पास जाना है, फिर यहाँ आकर राज्य करेंगे। यह ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए जो कोई को समझा सको। कच्चे को तो माया कच्चा खा जायेगी। बाबा के पास समाचार आता है - फलाने ने एक ही ऐसा तीर मारा जो बस, मैं बाबा का बन गया। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि कुमारियों द्वारा बाण मरवाये। इसको ज्ञान बाण कहा जाता है। सिर्फ बाप की याद दिलानी है। बाकी कोई स्थूल बाण की बात नहीं है। जानते कुछ भी नहीं। मनुष्यों को जो आया सो लिख दिया है। गन्दगी तो बहुत है। रिद्धि सिद्धि वाले भी बहुत हो गये हैं। सच जब निकलता है तो झूठ सामना करता है। अब तुम समझते हो कि शिवबाबा है निराकार और यह ब्रह्मा है साकार। बाकी नाभी आदि की कोई बात ही नहीं है। झूठ के कारण सच को मनुष्य समझ नहीं सकते। आजकल झूठे जवाहरात भी ऐसे फर्स्टक्लास निकले हैं जो सच छिप गया है। तुम किसको सच सुनाते हो तो जैसे मिर्ची लगती है। अरे मोस्ट बिलवेड बाप से तो वर्सा लेना है। वह फिर सर्वव्यापी कैसे होगा। सर्वव्यापी का तो कोई अर्थ ही नहीं निकलता। गॉड फादर स्वर्ग क्रियेट करते हैं तो हम स्वर्ग के मालिक होने चाहिए ना। फिर इतने कंगाल क्यों बने हैं। हम बाप के बच्चे हैं तो स्वर्ग के मालिक क्यों नहीं हैं! नर्क के मालिक कैसे बने हैं? गॉड तो रचयिता है ही नई दुनिया का। ऐसे नहीं कि वह पुरानी दुनिया स्थापन करते हैं। बाप पुराना घर थोड़ेही बनायेंगे। तो ऐसे-ऐसे ख्याल चलने चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) माया के विघ्नों से डरना नहीं है। बाप की याद से सब विघ्नों को हटा देना है।
2) बुद्धि से सब कुछ सरेन्डर कर अशरीरी बन बाप को याद करना है। ज्ञानी तू आत्मा के साथ-साथ योगी भी जरूर बनना है।
वरदान:-
निरन्तर योगी और पवित्र बन सर्व विकारों को विदाई देने वाले शक्ति स्वरूप, पूज्य स्वरूप भव |
बाप द्वारा सभी बच्चों को मुख्य दो वरदान प्राप्त होते हैं - एक सदा योगी भव दूसरा पवित्र भव। जो यह वरदान जीवन में सदा अनुभव करते हैं वह दो चार घण्टे के योगी नहीं होते लेकिन निरन्तर के योगी होते हैं। पवित्र भी कभी-कभी नहीं, सदा पवित्र और सर्व विकारों को विदाई देने वाले। ऐसे नहीं कभी क्रोध या मोह आ गया, कोई भी विकार स्मृति स्वरूप बनने नहीं देगा। तो ऐसे योगी ही शक्ति स्वरूप हैं और सदा पवित्र रहने वाले पूज्य स्वरूप हैं।
स्लोगन:-
सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहो तो भाग्य रूपी परछाई आपके साथ है।